ख्वाहिश बस इतनी सी थी…

रात की खामोशियों
को चीरती हुई
एक आवाज़ गूंजी
जानी पहचानी सी
उस शोर की तलाश में
कदम मेरे
कभी अंधेरों का पीछे करते
कभी तेरी यादों का

~~~

सन्नाटों से लैस
एक चौराहे पर फिर
दूर खड़ी तेरी परछाई
मुझे देख मुस्कुरायी
हज़ारों सवाल लिए
मेरी नज़रें
तेरा मन टटोलती रहीं
सेहमी सी तेरी आँखों में
अपना अक्स तलाशती रहीं

~~~

क्या सिलसिला था वो
बिखरती सिमटती
बेसब्रियों का
नज़दीकियों पर
फासलों का पहरा
अल्फ़ाज़ पर जज़्बात के लगाम
और होठों पे तरसता
बरसों का अनकहा पैगाम
~~~
तेरी तस्वीर तराशूं
या शब्दों में करूं तुझे कैद
यही सोचते सोचते
काली रात हुई सफ़ेद
खुद से पूछता रहा
वक़्त को कैसे मात दूँ
ख्वाहिश बस इतनी सी थी
तुझे किसी तरह रोक लूँ

~~~~~

आशा सेठ