जब निकले खुदको ढूंढने…

हर पल तेरी ही
यादों में खोये
जाने कब हम
खुदसे ही बेगाने हुए
शब्द तो मेरे थे
पर ज़िक्र तेरा
शहर तो मेरा था
पर बसेरा तेरा
जब निकले खुदको ढूंढने
हर गली में
मुलाकात हुई तुझसे
सोचा तुझसे ही
खुद का पता पूछ लूँ
पर तेरी गलियों में
इस कदर गुम हुए
मानो अपने घर की तलाश
थी ही किसे

~~~~~
आशा सेठ