वो पापा ही थे …

बारिश की उन रातों में
डूबे हुए नम यादों में
घूँट घूँट उन घंटों को पीते थे
हाँ, वो पापा ही थे

सुबह की न होश न खबर
सूरज की किरणों से परहेज कर
खाली बोतलों में
अधूरे सपनों को समेटते थे
हाँ, वो पापा ही थे

ख्वाहिशों की शैय्या से दूर
बुने अपने बेशर्त दस्तूर
मेरी दुनिया में कितने रंग भरते थे
हाँ, वो पापा ही थे

तकदीर की बेसब्र रफ़्तार से
ज़िन्दगी की हारी हुई चाल से
नन्हे क़दमों के राह बदले थे
हाँ, वो पापा ही थे

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आशा सेठ