कल…

चलते चलते
कदम नहीं थकते
ठहर जाने से थकते हैं
यह सोचकर परेशान नहीं
दिल की कल की सुबह
आज सी नहीं होगी
पर इस सोच में
डूबा रेहता है
की आज की शाम
कल सी हुई तोह क्या
डर इस बात का नहीं
की कल अपने मुँह मोड़ लें
फिक्र इस बात की होती है
की कल मेरे हाथ
उनको थाम न पाए तो क्या

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आशा सेठ