घर

दीवारों की दरारों में
छुपी ज़र्द यादें
पास जाकर देखा
कभी मेरा बचपन
सतह पर तैरता
कभी दादी का बुढ़ापा
कनखियों से झाँकता
खिड़कियों के पार से
सन्नाटे ताकते
कभी होली में रंगे
माँ-बाबा की झलक
तो कभी बिदाई में सजी
अन्नू का अक्स
खाली कमरों में गूंजते
हँसी के पटाखे
कभी पापा के ठहाके
तो कभी दादा के
कहानी-किस्से
एक एकड़ उस ज़मीं में
हज़ारों यादें दफ़्न
कभी वो मन बहलाते
तो कभी कितना तरसाते