मत कहो…

मत कहो
यह किस्मत की बात है…
जहां बारातों में
हज़ारों के निवाले
कूड़े दान को खिलाये जा रहे हैं
पर एक पिता
अपने परिवार को
दो वक़्त की रोटी तक
को खून बहा रहा है
मत कहो
यह किस्मत की बात है…
की बंद घरों में
दीवारों पे लटकी तसवीरें
घंटो ऐसी का हवा ले रही हैं
पर झुग्गियों में एक माँ
रात भर अपनी साड़ी के पल्लू से
मच्छर भगा रही है
मत कहो
यह किस्मत की बात है…
की जिनके बंगलों में
शानोशौकत की भरमार है
उन्ही की चौखट पे दीन
बिस्तरे को तरस रहे हैं
भाई, यह किस्मत के मारे नहीं
इंसानियत के मारे हैं
जो दो वक़्त का निवाला
और मुट्ठी भर अवसर मिल जाए
तो यह
किस नदी का मुँह न मोड़ें
किस खदान की कोख न टटोलें

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आशा सेठ