घर घर में कैद हैं
माँ की बेताबियाँ अनेक हैं
बाबा की तन्हाईयाँ ढेर हैं
दीदी के सपने सरफ़रोश हैं…
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घर घर में कैद हैं
ख्वाहिशें बेचैन हैं
दिल में रंजिशें खामोश हैं
आपसी शिकवे हर रोज़ हैं…
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घर घर में कैद हैं
हसरतें बेख़ौफ़ हैं
मनमर्ज़ियों का शोर है
बगावतों का शहर है…

👏👏👏👏👏👌💐😊💯❣️
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