एक कविता…

कल रात उनका खत आया

खत में थी एक कविता

देर तक उसे पढ़ती रही

उनके मंसूबों को टटोलती रही

 खुशबू से उस खत के घर महक उठा

मानो अभी अभी बरसात होके गया हो

रात भर उनकी कविता

करवटें लेती रही

उनकी कमी गहराती गयी

और मैं सुकून से परे रही

भोर हुई तो बिस्तर पर

एक दुसरे में लिपटे थे दोनों

मेरे अरमान उनके अलफ़ाज़

फिर कहीं जाकर

अपनी जज़्बातों को

ख़ामोशी के लिफाफे में समेट

कर लिया ज़ेहन में दफ़्न

इंतज़ार है तो बस रात का

जब महफ़िल फिर सजेगी

मिलेंगे जब मैं और वो

उनकी कविता के आग़ोश में ग़ुम