आज भी मन मचलता है
माँ के आँचल में
छिप जाने को दिल करता है
कभी बाबा की गोद में
सर रखकर रोने को जी करता है
जेब मेरी उन यादों से छलक रही है
जो कभी खुशियां हुआ करती थीं
आज उनकी नमी से
पैर बोझिल हैं
आँखें शुष्क हैं
कोई रास्ता साफ़ दिखता नहीं
कोई मोड़ साथ देता नहीं
मन करता हैं
माँ-बाबा से कुछ ऐसे लिपट जाऊँ
एक पल में सदियाँ बीत जाएँ
उनके छाओं तले
मन फिर हरा-भरा हो जाये
वह मेरा हाथ थामे रहे
मैं उनका शरण
और यूँही उम्र ढल जाए
और यूँही ज़िन्दगी कट जाए

It is a very beautiful poem directly connect to the listeners heart ,also it reflects your love towards your parents and childhood .so impressive its teaches the value of love and togetherness in our life ,Thanks for this wonderful creation .
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Wonderful observation, Rahul. Thanks for stopping by.
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Amazing!
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Thanks. 🙂
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