जब निकले खुदको ढूंढने…

हर पल तेरी ही यादों में खोये जाने कब हम खुदसे ही बेगाने हुए शब्द तो मेरे थे पर ज़िक्र तेरा शहर तो मेरा था पर बसेरा तेरा जब निकले खुदको ढूंढने हर गली में मुलाकात हुई तुझसे सोचा तुझसे ही खुद का पता पूछ लूँ पर तेरी गलियों में इस कदर गुम हुए मानो…

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ख्वाहिश बस इतनी सी थी…

रात की खामोशियों को चीरती हुई एक आवाज़ गूंजी जानी पहचानी सी उस शोर की तलाश में कदम मेरे कभी अंधेरों का पीछे करते कभी तेरी यादों का ~~~ सन्नाटों से लैस एक चौराहे पर फिर दूर खड़ी तेरी परछाई मुझे देख मुस्कुरायी हज़ारों सवाल लिए मेरी नज़रें तेरा मन टटोलती रहीं सेहमी सी तेरी…

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उस रात की बात …

क्या बताएं तुम्हें उस रात की बात चौखट पे बैठे अतीत की चादर में लिपटे किस कदर हम ख्वाहिशों को तरसे ~~~ क्या बताएं तुम्हें उस रात की बात होठों को सीए खामोशियों की बाहों में सिमटे किस कदर हम अल्फ़ाज़ को तरसे ~~~ क्या बताएं तुम्हे उस रात की बात खुद से गुफ्तगू करते…

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आज भी…

यादों की जीर्ण दीवारों पर आज भी तस्वीर तेरी लगी है कुछ चंद लम्हों को संजोती आज भी निगाहों में नमी हैं रात की बेसब्र खामोशियों में आज भी सदाएं तेरी गूंजती हैं कुछ चंद लम्हों को संजोती आज भी निगाहों में नमी हैं मौसम के रंगीन चेहरों पर आज भी अक्स तेरी सजी है कुछ…

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एक शाम वक़्त के नाम…

कई सुबह कई शामें गुजरीं वक़्त के कदम कभी न रुके एक पल में सदियाँ बदल गयीं कई सदियाँ एक पल में सिमटे ~~~ इस पहेली में गुम यह सोचा ज़रा फुर्सत से बैठें वक़्त को मुट्ठी में थाम उससे दो बातें करें हमने कहा: “आओ, ज़रा बैठो कुछ किस्से हमें भी सुनाओ अनकहे अनसुने…

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