Micropoetry#78

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कुछ हिस्से उन मुलाकातों के…

कुछ हिस्से उन मुलाकातों केवो पीछे छोड़ गए थेउन्हें मैंने अलमारी मेंसंजोकर रखा हैजब किसी रातउनकी कमी खलती हैऔर यादें छेड़तीं हैंउन्ही टुकड़ो कोपलंग पर बिखेर देती हूँकभी उनमें उनकीझलक ढूंढती हूँतो कभीउन खामोशियों की चादर सेकुछ अधूरी हसरतों कोढांक देती हूँ

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निगाहों में जिनकी हम…

ग़म तो जनाबइस बात का है कीनिगाहों में जिनकी हमताउम्र रहना चाहते थेउन्हें नज़रों से गिरने मेंज़्यादा वक़्त न लगाहम सपने बुनते रह गएऔर वो दबे पाओं दग़ा दे गए

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पलटवार

यूँ बिन बताए आधी रात आनासब जान चुके हैंपरेशान हो चुके हैंअब शांत हो चुके हैंयूँ खिड़की से सीटियां मारनासब जान चुके हैंपरेशान हो चुके हैंअब हार चुके हैंवक़्त का खेल तो देखोकिस्मत पलटवार कर गयीअब जो जा चुकी हो तो सुनोख्यालों मेंयूँ बिन बताए न आया करोभूला चुका हूँ मैंहार चुका हूँ मैंयूँ दिलोदिमाग…

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जो दास्ताँ…

जो दास्ताँ जुबां पर हैवह उन्हें बताते कैसेकहते भी तो क्यावो अपनाते उन्हेंगैरों के बीच जोरातें काटी हमनेउनके चौखट परअजनबी का दर्जान गवारा था हमेंज़िन्दगी बीत गयीदो पल की दिल्लगीके आस मेंऔर जो दास्ताँ जुबां पर थीबरसों हुए उन्हें भुलाये हमें

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Micropoetry#72

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दिलासा

शाम को जबपंछी घर लौटेउन्हें देख दिल कोछोटी सी ख़ुशी महसूस हुईमेरा आंगन न सहीकिसीकी तो बग़ियाआज रोशन हुई

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Micropoetry#69

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