और यूँही…

आज भी मन मचलता हैमाँ के आँचल मेंछिप जाने को दिल करता हैकभी बाबा की गोद मेंसर रखकर रोने को जी करता हैजेब मेरी उन यादों से छलक रही हैजो कभी खुशियां हुआ करती थींआज उनकी नमी सेपैर बोझिल हैंआँखें शुष्क हैंकोई रास्ता साफ़ दिखता नहींकोई मोड़ साथ देता नहींमन करता हैंमाँ-बाबा से कुछ ऐसे…

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एक कविता…

कल रात उनका खत आया खत में थी एक कविता देर तक उसे पढ़ती रही उनके मंसूबों को टटोलती रही  खुशबू से उस खत के घर महक उठा मानो अभी अभी बरसात होके गया हो रात भर उनकी कविता करवटें लेती रही उनकी कमी गहराती गयी और मैं सुकून से परे रही भोर हुई तो…

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मुकाम

ज़िन्दगी अक्सर ऐसे मुकाम पर ले आती हैजहां से आगे बढ़ना मुश्किल लगने लगता हैपीछे छूटे हुए रास्तेसवाल करने लगते हैंतीखे तीर मारने लगते हैंमानो मज़ाक बना रहे होंनुक्स निकाल रहे होंकदम यह सोचके लड़खड़ाने लगते हैं कीजो आज अपने हैंकहीं वह भी छोड़ कर चले गए तोऐसे में कहाँ जायेंगेकिस दरवाज़े खटखटाएंगेकौन अपनाएगागलतियों को…

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He’s in love…

When the sun sinks in the abyss he holds me and tells me he’s in love with my anxieties that curl around his gaze in the chill of the dark when I shiver he pulls me closer and tells me he’s in love with my fears that speak more than my lips do he grips…

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Micropoetry#82

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Micropoetry#80

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घर घर में कैद हैं…

घर घर में कैद हैंमाँ की बेताबियाँ अनेक हैंबाबा की तन्हाईयाँ ढेर हैंदीदी के सपने सरफ़रोश हैं…*घर घर में कैद हैंख्वाहिशें बेचैन हैंदिल में रंजिशें खामोश हैंआपसी शिकवे हर रोज़ हैं…*घर घर में कैद हैंहसरतें बेख़ौफ़ हैंमनमर्ज़ियों का शोर हैबगावतों का शहर है…

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कुछ हिस्से उन मुलाकातों के…

कुछ हिस्से उन मुलाकातों केवो पीछे छोड़ गए थेउन्हें मैंने अलमारी मेंसंजोकर रखा हैजब किसी रातउनकी कमी खलती हैऔर यादें छेड़तीं हैंउन्ही टुकड़ो कोपलंग पर बिखेर देती हूँकभी उनमें उनकीझलक ढूंढती हूँतो कभीउन खामोशियों की चादर सेकुछ अधूरी हसरतों कोढांक देती हूँ

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