एक शाम वक़्त के नाम…

कई सुबह कई शामें गुजरीं वक़्त के कदम कभी न रुके एक पल में सदियाँ बदल गयीं कई सदियाँ एक पल में सिमटे ~~~ इस पहेली में गुम यह सोचा ज़रा फुर्सत से बैठें वक़्त को मुट्ठी में थाम उससे दो बातें करें हमने कहा: “आओ, ज़रा बैठो कुछ किस्से हमें भी सुनाओ अनकहे अनसुने…

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